पूर्ति -10 : मेस्टिकोमी के बाद शारीरिक परेशानियों से कैसे उबरें

मेस्टोकोमी के बाद शारीरिक रूप से उबरना उतना ही ज़रूरी है जितना मानसिक और भावनात्मक रूप से ज़रूरी होता है। अच्छी तरह से ठीक होने के लिए आपको शारीरिक और मानसिक दोनों ही प्रकार से एक साथ ठीक होना बहुत ज़रूरी होता है। मेस्टिकोमी के बाद होने वाली शारीरिक परेशानियाँ और इलाज के बाद होने वाले दीर्घकालीन इफेक्ट, अकसर मरीज को कैंसर की याद दिलाते रहते हैं।
अक्सर मेस्टोकोमी का महिलाओं के शरीर और रंगरूप पर ही नहीं बल्कि उनके नारीत्व पर भी प्रभाव अच्छा नहीं डालता है। सर्जरी के बाद अक्सर महिलाओं का पुनः सामान्य जीवन शैली में आने का काम ब्रेस्ट रीकंस्ट्रक्षण या फिर कृत्रिम अंग लगाने के काम से ही शुरू होता है। इससे उन्हें अपनी एक या दोनों ब्रेस्ट के खोने से होने वाले नुकसान ही नहीं बल्कि जज्बाती तौर से भी ठीक होने में मदद मिलती है।
इलाज की प्रक्रिया में ब्रेस्ट का नुकसान होने पर महिला के शरीर का स्वाभाविक संतुलन गड़बड़ा जाता है और इसके कारण पोस्चर असंतुलन, बांह और कंधे में दर्द आदि परेशानियाँ भी होने लगती हैं। ब्रेस्ट कृत्रिम अंग किट्स जैसे पूर्ति के पास हैं समय पर ही शारीरिक रूप से ठीक होने में जल्दी मदद करती हैं। आप यदि चाहें तो इसके लिए आरना बायोमेडिकल प्रोडक्ट की टीम से संपर्क करके अधिक विस्तार से जानकारी प्राप्त कर सकती हैं।

मेस्टिकोमी के बाद शारीरिक दर्द

ब्रेस्ट कैंसर सर्जरी के बाद, अक्सर महिलाओं को न्यूरोपेथि की समस्याओं का सामना करना पड़ता है जिसके कारण छाती, बगलों और बाहों में या आसपास के एरिया में दर्द होने लगता है जो कभी-कभी लंबे समय तक चलता है। इसे पोस्ट -मेस्टोकोमी (स्तन निकालने की सर्जरी) पेन सिंड्रोम या स्तन निकालने वाली सर्जरी के बाद होने वाला दर्द जो आमतौर पर उन्हीं महिलाओं को होता है जिनके स्तन ब्रेस्ट कैंसर के इलाज प्रक्रिया में निकाल दिये जाते हैं।
इसकी प्रमुख निशानियाँ छाती, बगलों और अथवा बाहों या बाहों के आसपास में दर्द या सुन्न होना होता है। हाथों या ऑपरेशन वाली जगह पर भी इस दर्द को महसूस किया जा सकता है। सुन्न होना, असहनीय दर्द या बेतहाशा खुजली इसकी दूसरी सामान्य शिकायतें होती हैं। हालांकि यह सब लक्षण बहुत अधिक गंभीर नहीं होते हैं। आमतौर पर यह अध्ययन किया गया है कि लगभग 20-30% महिलाओं में इस तरह कि शिकायतें और लक्षण देखे जा सकते हैं। ऐसा प्रायः बगलों की नसों में आई गांठों या Axillary Lymph Node के निकाल देने के कारण होता है ।

लिंफ़ेडीमा

यदि ब्रेस्ट कैंसर दूसरी स्टेज तक पहुँच जाता है, तब बगलों या छाती में निकल आई गांठों के कारण इन स्थानों के लिम्फ़ नोड्स को निकाल देने की जरूरत होती है। इस बात का निर्णय भी यह देखकर लिया जाता है कि कैंसर के किटाणु शरीर में कितनी सीमा तक और कितनी दूर तक फ़ैल चुके हैं। लिम्फ़ नोड्स निकाल देने के बाद आमतौर पर महिलाओं की इमम्युनिटी जो शरीर में इन्फेक्शन रोकने वाले व्हाइट सेल्स के निरान के लिए भी उत्तरदाई होती है, कमजोर हो जाती है।
लिंफ़ेडीमा के कारण हाथ और पैरों में फ़्ल्युड इकठ्ठा हो जाता है और इस कारण इन जगहों या इसके आसपास वाली जगहों पर दुर्बलता और सूजन आने लगती है। इसके साथ ही खुजली, लाल निशान और स्किन इन्फेक्शन आदि जैसी परेशानियाँ भी होने लगती हैं। विभिन्न शोध रिपोर्ट्स में यह सिद्ध किया गया है कि जिन महिलाओं के ब्रेस्ट कैंसर के कारण लिम्फ़ नोड्स निकाल दिये जाते हैं उनमें लगभग 20% को लिंफ़ेडीमा कि शिकायत हो सकती है। लिंफ़ेडीमा के इलाज के लिए एक स्वस्थ शरीर में से लिम्फ़ नोड्स निकाल कर उन्हें प्रभावित महिला के शरीर में ट्रांसप्लांट किया जाता है। आधुनिक मेडिकल तकनीक के कारण अब यह पता करना बहुत आसान हो गया है कि शरीर के किस भाग में इन नोड्स का इस्तेमाल किया जाना है।
अब चिकित्सा क्षेत्र में लगे विशेषज्ञ इस बात की कोशिश में लगे हुए हैं कि किस तरह लिंफ़ेडीमा के असर को कम किया जा सकता है।

फॉलो-अप और देखभाल

सामान्य रूप से मेस्टोकोमी संबंधी शारीरिक परेशानियों को सर्जरी के बाद कि प्रक्रिया पर ही देखा जाता है। इसमें दवा, फिजियोथेरेपी और साइकोलोजिकल सेशन्स होते हैं।
कैंसर के दोबारा उभरने की संभावना के बारे में पता करना ही निरंतर किए जाने वाले फॉलो अप का एक प्रमुख उद्देश्य होता है। कुछ स्थितियों में इलाज के बाद भी कैंसर के कुछ सेल्स शरीर में रह जाते हैं और वो तभी सामने आते हैं जब वो सारे शरीर में फैल जाते हैं। कैंसर को दोबारा फैलने से रोकने के लिए, आपका कैंसर-चिकित्सक आपको बाद में दवा और कुछ रक्त की जांच के लिए कह सकते हैं।
कैंसर के इलाज में दी जाने वाली दवाओं में से कुछ हृदय संबंधी परेशानियों को भी बढ़ा सकती हैं। इसके लिए आपको इसके विभिन्न लक्षणों पर नज़र रखनी चाहिए और जैसे ही यह सामने आते हैं आपको तुरंत अपने चिकित्सक से सलाह करनी चाहिए।

लेखिका : प्रत्योशा मजूमदार